Saturday, June 16, 2012

रौशनी से भला जुगनू ये निकलता क्यों है





रौशनी  से  भला  जुगनू  ये  निकलता  क्यों   है 
अक्स  इसका  मेरी  आँखों  में  बिखरता  क्यों  है 

गुफ्तुगू  में  जो  तेरा  ज़िक्र  कभी  आ  जाए 
दर्द  तूफ़ान  की  तरह  दिल  में  मचलता  क्यों  है 

रात  भर  चाँद  ने  चूमी  है  तेरी  पेशानी 
उसको  अफ़सोस  है  सूरज  ये  निकलता  क्यों  है 

किस  लिए  फैला  है  हसरत  का  धुवां   चारों  तरफ 
दिल  से  एक  आह  का  शोला  ये  निकलता  क्यों  है 

सोचती  रहती  हूँ फुर्सत में  यही   मैं "सीमा "
काम  जो  होना है  आखिर  वोही  टलता  क्यों  है 

1 comment:

Shanti Garg said...

बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।